पाश जयंती : क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू की अमर गाथा
आज 9 सितंबर, हम महान पंजाबी कवि और क्रांतिकारी विचारक अवतार सिंह संधू, जिन्हें पाश के नाम से जाना जाता है, की जयंती मना रहे हैं। पाश पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गांव में 1950 में पैदा हुए थे। एक किसान परिवार से निकलकर, उन्होंने अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से युवाओं के दिलों में क्रांति की आग जलाई। उनकी कविताओं में गरीबों, मजदूरों और किसानों के संघर्ष की गूंज सुनाई देती है। पाश ने अपने शब्दों को ही अपना हथियार बनाया और जीवन भर अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
Pash Birthday Anniversary : पाश एक ऐसे कवि थे जिन्होंने युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। उनकी कविताएं आज भी युवाओं के संघर्ष और सपनों को जीवित रखती हैं। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ, “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” और “हम लड़ेंगे साथी”, आज भी आंदोलनों और बदलाव की बात करने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। 1988 में उनकी हत्या के बावजूद, उनकी कलम आज भी अमर है। पाश ने खुद लिखा था, “मैं घास हूं हर चीज़ पर उग आऊंगा” और सच में, वे आज भी विचारों की भूमि पर हर पीढ़ी में उगते रहते हैं।
क्रांति उनके खून में रची-बसी थी
पाश सिर्फ एक कवि नहीं थे, बल्कि एक क्रांतिकारी सोच के वाहक भी थे। उनकी कलम कभी भी डर या हिचक के आगे नहीं झुकी। उनकी कविताएं हमेशा मजदूरों और किसानों की आवाज बनकर उभरीं। यही कारण है कि आज भी जब बदलाव की बात होती है, तो उनकी पंक्तियों से ही शुरुआत की जाती है।
शिक्षा और शुरुआती जीवन
उन्होंने 1976 में दसवीं पास की और ज्ञानी की डिग्री हासिल की, जो बीए के बराबर मानी जाती है। बाद में उन्होंने जेबीटी की परीक्षा भी पास की। पाश को 1985 में पंजाबी एकेडमी ऑफ लेटर्स से फैलोशिप भी मिली। इस दौरान वह इंग्लैंड और अमेरिका गए, जहां उन्होंने अपनी विचारधारा और कविताओं से भारतीय समुदाय को प्रेरित किया।
कविताएं जो बनीं आंदोलन की आवाज
पाश की कविताएं युवाओं के सपनों को जगाने वाली मशाल बनीं। “हम लड़ेंगे साथी” और “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” सिर्फ कविताएं नहीं थीं, बल्कि आंदोलनों की घोषणाएं बन गईं। यही वजह है कि उन्हें नक्सल आंदोलन के कवि के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन उनकी कविताएं वास्तव में जीवन के हर रंग को छूती हैं।
पत्रकार और संपादक के रूप में योगदान
कवि होने के साथ-साथ, पाश एक संपादक भी थे। उन्होंने 1972 में ‘सियाड़’ नाम की पत्रिका निकाली और बाद में ‘हेम ज्योति’ पत्रिका के संपादक बने। 1986 में अमेरिका में रहते हुए उन्होंने ‘एंटी 47 फ्रंट’ पत्रिका की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने खालिस्तान आंदोलन और हिंसा का खुलकर विरोध किया। Editorial Contribution में भी उनका अहम योगदान था।
अमर हो गई उनकी कविताएं
23 मार्च, जिस दिन भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उसी दिन खालिस्तानी उग्रवादियों ने पाश की हत्या कर दी। उनकी हत्या ने उनके शरीर को भले ही खत्म कर दिया, लेकिन उनकी कविताएं आज भी जीवित हैं। उनके शब्द समय से परे जाकर हर नई पीढ़ी के लिए उम्मीद और संघर्ष की ताकत बनते हैं। Literary legacy और cultural impact में पाश का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। Social Justice के लिए उनकी commitment हमेशा प्रेरणादायक रहेगी।