खरना पूजा 2025: तिथि, महत्व और प्रसाद
नहाय-खाय के अगले दिन खरना पूजन का दिन होता है। यह छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ भी कहते हैं। यह दिन व्रती यानी छठ का व्रत रखने वाले के लिए बेहद सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से असली तपस्या और भक्ति की शुरुआत होती है। आइए जानते हैं कि खरना पूजा क्या है, इसका धार्मिक महत्व क्या है और इस दिन बनाए जाने वाले प्रसाद की विशेषता क्या है?
खरना पूजा क्या है?
‘खरना’ शब्द का अर्थ होता है पा,पों का क्षय और आत्मा की शुद्धि। छठ पूजा के इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला यानी बिना अन्न-जल के उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद स्नान-पूजन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण कर अगले दो दिन के कठिन व्रत की शुरुआत होती है। यही कारण है कि खरना को आत्मसंयम, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक माना गया है। यह छठ पर्व का एक महत्वपूर्ण अंग है।
खरना पूजा का धार्मिक महत्व
खरना का दिन साधक और सूर्य देव के बीच एक सेतु की तरह माना जाता है। इस दिन व्रती सूर्य देव से आशीर्वाद की कामना करते हैं कि वे आगामी दो दिनों का व्रत शुद्धता और निष्ठा से पूरा कर सकें। मान्यता है कि खरना पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का संचार होता है। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और मन की शांति का पर्व है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है।
खरना प्रसाद में क्या बनता है?
खरना पूजा के प्रसाद की बात करें तो इसमें सादगी और पवित्रता का गहरा संदेश छिपा होता है। मुख्य रूप से दो चीजें बनाई जाती हैं:
रसिया खीर: दूध, चावल और गुड़ से बनने वाली यह रसिया खीर मिठास और संतोष का प्रतीक मानी जाती है। इसमें चीनी का प्रयोग नहीं होता है। इसलिए इसे गुड़ की खीर भी कहते हैं। यह पारंपरिक व्यंजन है जो इस पर्व की पहचान है।
सोहारी: बेहद कम देसी घी में हल्की सेंकी गई एक प्रकार की पतली रोटी है, जिसे सोहारी कहते हैं। इसे श्रम, साधना और पूजा की बारीकी का प्रतीक माना है। यह सरल भोजन मन को शांति प्रदान करता है।
आपको बता दें कि छठ पूजा के प्रसाद को केवल मिट्टी, पीतल या कांसा के बर्तनों में बनाया जाता है ताकि उसकी पवित्रता बनी रहे। यह पवित्रता इस पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
खरना पूजा का प्रसाद
खरना पूजा के प्रसाद में सोहारी और रसिया हर घर में बनाया जाता है। इन दो पकवानों के बिना खरना पूजन अधूरी मानी जाती है। इनके अलावा चीनी पाक मिठाई, बतासे, केला, मूली और अन्य फल हरे और ताजे केले के पत्ते पर चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही पान-सुपारी चढ़ाना भी पूजा का अनिवार्य हिस्सा है। बहुत जगहों पर इसे मिट्टी के छोटे-छोटे पात्र में भी अर्पित किया जाता है। छठ पूजा गीत गाए जाते हैं जिससे माहौल भक्तिमय हो जाता है।
कब और किस समय होती है खरना पूजा ?
खरना पूजा नहाय-खाय के अगले दिन की जाती है। इस वर्ष 2025 में खरना पूजा रविवार 26 अक्टूबर को यानी आज मनाई जाएगी। इस पूजा का शुभ समय सूर्यास्त के बाद होता है, जब व्रती स्नान-ध्यान कर पूजा संपन्न करते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह शुभ मुहूर्त इस पर्व को और भी खास बनाता है।
खरना पूजा की सावधानियां
प्रसाद बनाने से पहले रसोई और घर पूरी तरह साफ किया जाता है। फिर रसिया खीर को मिट्टी के नए चूल्हे और गाय की गोबर से बने उपले की मद्धम आग पर पकाया जाता है। प्रसाद केवल मिट्टी, पीतल या कांसे के बर्तनों में ही बनाए जाते हैं। इसका भली-भांति ध्यान रखा जाता है कि कोई भी अपवित्र वस्तु या अस्वच्छ व्यक्ति रसोई में न जाए। यह सावधानी इस पर्व की पवित्रता बनाए रखने के लिए जरूरी है।
खरना के बिना अधूरी है छठ पूजा
खरना को छठ महापर्व की ‘आत्मा’ कहा जाता है। कहते हैं, यह दिन व्रती को भौतिक इच्छाओं से दूर ले जाकर भक्ति के सागर में डुबो देता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा, स्वच्छता और संयम से खरना पूजा करता है, उसके जीवन में सूर्य देव का आशीर्वाद कभी कम नहीं होता। खरना का प्रसाद न केवल पेट का अन्न है, बल्कि आत्मा की तृप्ति का भी प्रतीक है। यह आध्यात्मिक अनुभव इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
