नेपाल में सोशल मीडिया बैन : राजनीतिक संकट और भू-राजनीतिक दांव
नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन ने राजनीतिक संकट को जन्म दे दिया है। यह बैन अचानक लगाया गया, जिसके बाद देश में विरोध प्रदर्शन हुए और हिंसा भड़क उठी। संसद घेराव और छात्र आंदोलनों में कई लोगों की जान चली गई, जिससे देश गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट में फंस गया है। इस पूरे घटनाक्रम के पीछे अमेरिका और चीन की रणनीतिक जंग की भी चर्चा हो रही है, जिससे नेपाल एक नए जियोपॉलिटिकल अखाड़े के रूप में उभरता दिख रहा है।
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का शी जिनपिंग के साथ मंच साझा करना और उसके कुछ ही दिनों बाद नेपाल में हिंसा भड़कना, इस पूरे घटनाक्रम को और भी संदिग्ध बना देता है। क्या यह सिर्फ सरकार और जनता के बीच का टकराव है, या इसके पीछे अमेरिका और चीन की कूटनीतिक खींचतान छिपी है?
सोशल मीडिया बैन का कारण
नेपाल सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और एक्स (ट्विटर) जैसे 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगाने का फैसला किया, जिसका मुख्य कारण बताया गया कि इन कंपनियों ने पंजीकरण की शर्तें पूरी नहीं की थीं। लेकिन, इस फैसले ने जनता को भड़का दिया। खासकर, जनरेशन ज़ेड (Gen-Z) के युवाओं में गुस्सा फूट पड़ा, क्योंकि उनकी दुनिया सोशल मीडिया पर ही टिकी हुई है।
विरोध प्रदर्शन और संसद घेराव
सोशल मीडिया बैन लगने के बाद हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। संसद के बाहर विरोध ने हिंसक रूप ले लिया, जिसमें कई छात्रों की जान चली गई। सरकार का तर्क था कि ये प्लेटफॉर्म फर्जी खबरें फैलाकर समाज में अशांति पैदा कर रहे थे, लेकिन विरोधियों का आरोप है कि सरकार का असली मकसद जनता की आवाज को दबाना था। संसद घेराव के दौरान हुई मौतों ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया।
अमेरिका और चीन की कूटनीतिक रस्साकशी
यह पूरा घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ जब नेपाल ने चीन के साथ अपनी नजदीकी बढ़ाई। ओली का बीजिंग में दिखना और चीनी राष्ट्रपति के साथ उनकी तस्वीरें, एक वैश्विक संदेश थीं। अमेरिका, जो नेपाल को अपने प्रभाव में रखना चाहता है, इस कदम से असहज हुआ। सोशल मीडिया बैन से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिकी कंपनियां ही हुईं, जिससे यह धारणा मजबूत हुई कि नेपाल ने चीन की तरफ झुकाव दिखाया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका अब नेपाल पर कूटनीतिक दबाव बढ़ा सकता है, जबकि चीन इस मौके को अपने फायदे में बदलने की कोशिश करेगा।
नेपाल की आंतरिक राजनीति पर असर
सोशल मीडिया बैन और हिंसा ने ओली सरकार की साख पर गहरा असर डाला है। विपक्ष पहले से ही उन्हें चीन के हाथों की कठपुतली बताता रहा है। अब यह धारणा और मजबूत हो रही है। नेपाल के भीतर यह बहस तेज हो गई है कि क्या देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चल रहा है या वह चीन-अमेरिका की खींचतान में सिर्फ मोहरा बन चुका है। आने वाले समय में नेपाल की राजनीतिक स्थिरता और सरकार का भविष्य इसी सवाल पर टिका होगा।
नेपाल : क्या बनेगा नया जियोपॉलिटिकल फ्लैशप्वाइंट?
नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे हमेशा रणनीतिक रूप से अहम बनाती रही है। भारत, चीन और अमेरिका तीनों देशों की नजरें उस पर रहती हैं। सोशल मीडिया बैन और संसद पर हमला यह संकेत देता है कि नेपाल अब वैश्विक ताकतों की जंग का मैदान बन चुका है। अगर अशांति बढ़ती रही तो नेपाल न केवल आंतरिक संकट से जूझेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अगला हॉटस्पॉट भी बन सकता है। Nepal’s political situation अब crisis की ओर बढ़ रही है।