जलवायु परिवर्तन का अफ्रीका पर गहरा संकट: CSE की रिपोर्ट का खुलासा
नमस्ते दोस्तों! आज हम बात करने वाले हैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर, जलवायु परिवर्तन का अफ्रीका पर गंभीर प्रभाव। हाल ही में, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है ‘स्टेट ऑफ अफ्रीकाज एनवायरमेंट 2025’। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण अफ्रीका के सामने आने वाले खतरों का खुलासा किया गया है, जो वाकई चिंताजनक हैं।
Climate Change एक ऐसी चुनौती है जिससे आज पूरी दुनिया जूझ रही है, और अफ्रीका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से एक है। CSE की रिपोर्ट के अनुसार, अगर वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि होती है, तो अफ्रीका की आधी से भी अधिक आबादी कुपोषण का शिकार हो सकती है। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि खाद्य सुरक्षा पर यह कितना बड़ा संकट होगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अफ्रीका की लगभग 70% आबादी छोटे किसानों और बारिश पर निर्भर है। ये किसान ही जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उनकी कृषि पैदावार पर सीधा खतरा मंडरा रहा है।
कृषि पर असर:
रिपोर्ट में कृषि पैदावार पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तार से जिक्र किया गया है। 2050 तक, सहारा के दक्षिणी हिस्सों में मक्का का उत्पादन 22% तक गिर सकता है। वहीं, जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका में यह गिरावट 30% से भी अधिक हो सकती है। गेहूं की पैदावार में भी 35% तक की कमी आने की आशंका है। भले ही कुछ फसलों में थोड़ी बहुत वृद्धि की संभावना हो, लेकिन अनाज और बागवानी फसलों में होने वाला नुकसान इस लाभ को बेअसर कर देगा।
कोको उत्पादन पर संकट:
कोको उत्पादन, जो अफ्रीका की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है। पश्चिमी और मध्य अफ्रीका, जो दुनिया का 70% कोको उत्पादन करते हैं, में जलवायु परिवर्तन के कारण कोको की खेती पर बुरा असर पड़ रहा है। शोध के अनुसार, 2050 तक कोको के लिए उपयुक्त क्षेत्र आधे हो सकते हैं। आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया, और कैमरून में कोको उत्पादन में भारी गिरावट आने की आशंका है। यह भी संभावना है कि कोको उत्पादन का केंद्र भविष्य में पूर्वी देशों की ओर खिसक सकता है।
पानी और मत्स्य संसाधनों पर प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन साफ पानी की उपलब्धता को भी प्रभावित करेगा। बढ़ती आबादी के साथ, ताजे पानी का संकट और गहरा सकता है। इसके अलावा, समुद्रों का गर्म होना और अम्लीकरण तटीय क्षेत्रों के मत्स्य संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे लाखों लोगों का पोषण खतरे में है। पश्चिमी अफ्रीका में मत्स्य संसाधनों की कीमत 20% तक घट सकती है।
जैव विविधता और वनों की चुनौती:
रिपोर्ट में जंगलों और जैव विविधता पर भी खतरे की बात कही गई है। कैमरून जैसे देशों में कोको उत्पादन बढ़ने की संभावना है, लेकिन इसके साथ ही वर्षावनों को बचाने और कोको उत्पादन को बढ़ाने के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
आगे की राह:
अफ्रीका को इस गंभीर जलवायु संकट से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना, जल संरक्षण पर ध्यान देना, और जैव विविधता को बचाना जरूरी है। हमें यह याद रखना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और हमें इस पर मिलकर काम करना होगा।
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