स्कंद षष्ठी 2025: सूरसंहारम क्या है, स्कंद षष्ठी पर्व से इसका क्या संबंध है, जानें पौराणिक कथा और महत्व – Nepal Updates | Stock Exchange

Skanda Shashthi 2025: सूरसंहारम – बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व

स्कंद षष्ठी 2025: सूरसंहारम त्योहार भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन या स्कंद के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित है। यह त्योहार कार्तिक मास में षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी पर्व के छठे दिन मनाया जाता है। यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है, जब भगवान मुरुगन ने असुर सूरपद्मन का वध कर धर्म की पुन: स्थापना की थी। यह दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक दिव्य और अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। आइए जानते हैं, सूरसंहारम त्योहार की पौराणिक कथा और महत्व क्या है?

सूरसंहारम का अर्थ और महत्व

सूरसंहारम’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है: सूर और संहारम, जहां ‘सूर’ का अर्थ है राक्षस सूरपद्मन और ‘संहारम’ का अर्थ है संहार या विनाश। इस प्रकार सूरसंहारम का अर्थ हुआ, सूरपद्मन राक्षस का विनाश। सूरपद्मन राक्षस के विनाश की कथा केवल एक पौराणिक युद्ध की कथा नहीं, बल्कि अज्ञान, अहंकार और अधर्म के अंत का प्रतीक है। इस दिन को आध्यात्मिक रूप से ऐसा दिन माना जाता है जब व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मकता को समाप्त कर आत्मिक ज्योति को प्रकट कर सकता है। यह तमिलनाडु त्योहार का एक अभिन्न अंग है।

स्कंद षष्ठी का समापन है सूरसंहारम

स्कंद षष्ठी एक छह दिवसीय पर्व है जो कार्तिक मास की प्रतिपदा से शुरू होकर षष्ठी तिथि तक चलता है। भक्त इन छह दिनों तक उपवास, प्रार्थना और भक्ति-साधना करते हैं। छठे दिन, यानी षष्ठी तिथि को भगवान मुरुगन ने असुर सूरपद्मन का वध किया था। इसलिए यह दिन सूरसंहारम दिवस कहलाता है। आपको बता दें कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब पंचमी और षष्ठी तिथि का संयोग होता है, तब सूरसंहारम व्रत मनाया जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय यानी मुरुगन के भक्त रात्रि जागरण, अभिषेक और मंत्रों का जाप करते हैं। भगवान मुरुगन की आराधना का विशेष महत्व है।

सूरसंहारम की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, असुर सूरपद्मन, सिंहमुखन और तारकासुर ने अपने तप से वरदान प्राप्त कर देवताओं को पराजित कर दिया था। देवता जब अत्याचार से पीड़ित हुए, तब उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव के तेज से मुरुगन यानी भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने छह दिनों तक भयंकर युद्ध किया। छठे दिन उन्होंने सूरपद्मन का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाई। यही क्षण सूरसंहारम के रूप में मनाया जाता है, जो सत्य और धर्म की विजय का उत्सव है। यह पौराणिक कथा सदियों से लोगों को प्रेरित करती आ रही है।

ऐसे मनाया जाता है सूरसंहारम

यह त्योहार विशेष रूप से दक्षिण भारत के तमिलनाडु में अत्यंत भव्य रूप में मनाया जाता है, खासकर तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर, पालनी, स्वामिमलई और तिरुपरनकुंद्रम जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में। भक्त छह दिन तक उपवास, पूजा, और भजन करते हैं। मंदिरों में हर दिन मुरुगन के युद्ध के एक चरण का नृत्य नाटिका पेश किया जाता है। अंतिम दिन, यानी सूरसंहारम दिवस पर, भगवान मुरुगन द्वारा सूरपद्मन के वध की झांकी दिखाई जाती है। इस झांकी की रथयात्रा, दीप आराधना और भक्ति नृत्य कवडी अट्टम से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। तमिलनाडु मंदिर इस उत्सव के केंद्र होते हैं।

सूरसंहारम त्योहार से मिलती है यह सीख

सूरसंहारम से हमें यह सीख मिलती है कि जब बुद्धि और शक्ति के साथ यदि धैर्य हो, तो जीवन की हर बुराई पर विजय संभव है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मविजय का प्रतीक है, जो अहंकार, आलस्य और नकारात्मक विचारों का अंत करके सच्चे कर्म और भक्ति के मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देता है। सत्य की विजय का यह पर्व हमें हमेशा प्रेरित करता है।

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